छठ पूजा का गीत | Chhath Puja Geet

Chhath Puja Geet

पहिले पहिल हम कईनी,
छठी मईया व्रत तोहार ।
करिहा क्षमा छठी मईया,
भूल-चूक गलती हमार ।

सब के बलकवा के दिहा,
छठी मईया ममता-दुलार ।
पिया के सनईहा बनईहा,
मईया दिहा सुख-सार ।

नारियल-केरवा घोउदवा,
साजल नदिया किनार ।
सुनिहा अरज छठी मईया,
बढ़े कुल-परिवार ।

घाट सजेवली मनोहर,
मईया तोरा भगती अपार ।
लिहिएं अरग हे मईया,
दिहीं आशीष हजार ।

पहिले पहिल हम कईनी,
छठी मईया व्रत तोहर ।
करिहा क्षमा छठी मईया,
भूल-चूक गलती हमार ।

Chhath Puja Geet in Bhojpuri

सोना सट कुनिया, हो दीनानाथ
हे घूमइछा संसार, हे घूमइछा संसार

सोना सट कुनिया, हो दीनानाथ
हे घूमइछा संसार, हे घूमइछा संसार

आन दिन उगइ छा हो दीनानाथ
आहे भोर भिनसार, आहे भोर भिनसार

आजू के दिनवा हो दीनानाथ
हे लागल एती बेर, हे लागल एती बेर

बाट में भेटिए गेल गे अबला
एकटा अन्हरा पुरुष, एकटा अन्हरा पुरुष

अंखिया दियेते गे अबला
हे लागल एती बेर, हे लागल एती बेर

बाट में भेटिए गेल गे अबला
एकटा बाझिनिया, एकटा बाझिनिया

बालक दियेते गे अबला
हे लागल एती बेर, हे लागल एती बेर....

छठ पूजा गीत

कबहुँ ना छूटी छठि मइया,
हमनी से बरत तोहार
हमनी से बरत तोहार

तहरे भरोसा हमनी के,
छूटी नाही छठ के त्योहार
छूटी नाही छठ के त्योहार

अपने सरन में ही रखिह,
दिह आसिस हज़ार
दिह आसिस हज़ार

गोदिया भराईल छठी मइय्या,
बाटे राऊर किरपा अपार
बाटे राऊर किरपा अपार

चाहें रहब देसवा बिदेसवा,
छठ करब हम हर बार
छठ करब हम हर बार

डूबतो सुरुज के जे पूजे,
इहे बाटे हमर बिहार
इहे बाटे हमर बिहार

फलवा दउरवा सजाके,
अईनी हम घाट पे तोहार
अईनी हम घाट पे तोहार

दिहनी अरघ छठी मईया,
करीं हमर आरती स्वीकार
करीं हमर आरती स्वीकार

कबहुँ ना छूटी छठि मइया,
हमनी से बरत तोहार
हमनी से बरत तोहार

तहरे भरोसा हमनी के,
छूटी नाही छठ के त्योहार
छूटी नाही छठ के त्योहार
छूटी नाही छठ के त्योहार
छूटी नाही छठ के त्योहार..

छठ पूजा का गीत | Chhath Puja Geet Bhojpuri

ऊ जे केरवा जे फरेला# खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए+।
मारबो^ रे सुगवा** धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।

ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित* होई ना सहाय ॥

ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए ।
मारबो रे सुगवा धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।

ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित होई ना सहाय ॥

अमरुदवा जे फरेला खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए ।
मारबो रे सुगवा धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।

ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित होई ना सहाय ॥

शरीफवा जे फरेला खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए ।
मारबो रे सुगवा धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।

ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित होई ना सहाय ॥

ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए ।
मारबो रे सुगवा धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।

ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित होई ना सहाय ॥

सभे फलवा जे फरेला खबद से,
ओह पर सुगा मेड़राए ।
मारबो रे सुगवा धनुख से,
सुगा गिरे मुरझाए ।

ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से,
आदित होई ना सहाय ॥

*आदित = आदित्य/सूर्य/सूरज
+मेड़राए = मंडराए
^मारबो = मारुंगा/मारुंगी
#फरेला = फलता है/फल
**सुगवा = तोता

श्री सूर्य देव - ऊँ जय सूर्य भगवान - छठ पूजा का गीत

ऊँ जय सूर्य भगवान,
जय हो दिनकर भगवान ।
जगत् के नेत्र स्वरूपा,
तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ।
धरत सब ही तव ध्यान,
ऊँ जय सूर्य भगवान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

सारथी अरूण हैं प्रभु तुम,
श्वेत कमलधारी ।
तुम चार भुजाधारी ॥
अश्व हैं सात तुम्हारे,
कोटी किरण पसारे ।
तुम हो देव महान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

ऊषाकाल में जब तुम,
उदयाचल आते ।
सब तब दर्शन पाते ॥
फैलाते उजियारा,
जागता तब जग सारा ।
करे सब तब गुणगान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

संध्या में भुवनेश्वर,
अस्ताचल जाते ।
गोधन तब घर आते॥
गोधुली बेला में,
हर घर हर आंगन में ।
हो तव महिमा गान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

देव दनुज नर नारी,
ऋषि मुनिवर भजते ।
आदित्य हृदय जपते ॥
स्त्रोत ये मंगलकारी,
इसकी है रचना न्यारी ।
दे नव जीवनदान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

तुम हो त्रिकाल रचियता,
तुम जग के आधार ।
महिमा तब अपरम्पार ॥
प्राणों का सिंचन करके,
भक्तों को अपने देते ।
बल बृद्धि और ज्ञान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

भूचर जल चर खेचर,
सब के हो प्राण तुम्हीं ।
सब जीवों के प्राण तुम्हीं ॥
वेद पुराण बखाने,
धर्म सभी तुम्हें माने ।
तुम ही सर्व शक्तिमान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

पूजन करती दिशाएं,
पूजे दश दिक्पाल ।
तुम भुवनों के प्रतिपाल ॥
ऋतुएं तुम्हारी दासी,
तुम शाश्वत अविनाशी ।
शुभकारी अंशुमान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

ऊँ जय सूर्य भगवान,
जय हो दिनकर भगवान ।
जगत के नेत्र रूवरूपा,
तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ॥
धरत सब ही तव ध्यान,
ऊँ जय सूर्य भगवान ॥

श्री सूर्य देव चालीसा - Chhath Puja Geet

॥दोहा॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥

॥चौपाई॥
जय सविता जय जयति दिवाकर,
सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु पतंग मरीची भास्कर,
सविता हंस सुनूर विभाकर॥ 1॥

विवस्वान आदित्य विकर्तन,
मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि खग रवि कहलाते,
वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥ 2॥

सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि,
मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर,
हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥3॥

मंडल की महिमा अति न्यारी,
तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,
देखि पुरन्दर लज्जित होते॥4

मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,
सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै,
हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥5॥

द्वादस नाम प्रेम सों गावैं,
मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै,
दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥6॥

नमस्कार को चमत्कार यह,
विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई,
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥7॥

बारह नाम उच्चारन करते,
सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन,
रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥8॥

धन सुत जुत परिवार बढ़तु है,
प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते,
रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥9॥

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,
कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित,
भास्कर करत सदा मुखको हित॥10॥

ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,
तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥11॥

पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर,
त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन,
भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥12॥

बसत नाभि आदित्य मनोहर,
कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा,
गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥13॥

विवस्वान पद की रखवारी,
बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,
रक्षा कवच विचित्र विचारे॥14॥

अस जोजन अपने मन माहीं,
भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै,
जोजन याको मन मंह जापै॥15॥
अंधकार जग का जो हरता,
नव प्रकाश से आनन्द भरता॥

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही,
कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके,
धर्मराज सम अद्भुत बांके॥16॥

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,
किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,
दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥17॥

परम धन्य सों नर तनधारी,
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,
मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥18॥

भानु उदय बैसाख गिनावै,
ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता,
कातिक होत दिवाकर नेता॥19॥

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं,
पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥20॥

॥दोहा॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥

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